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याद फिर तेरी अचानक / छाया त्रिपाठी ओझा

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वक्त के साये तले जो
थी कभी धुँधला गयी।
याद फिर तेरी अचानक
आज मुझको आ गयी।

सोचकर बीते दिनों को
डर मुझे लगने लगा !
वक्त है चालाक कितना
फिर मुझे ठगने लगा !
नयन मे आकर घटा फिर
आज देखो छा गयी।
याद फिर तेरी अचानक
आज मुझको आ गयी।

क्या कहूं तुझसे भला अब
ये नया इक दौर है !
कल जहाँ पर था कभी तू
आज कोई और है !
जो भी मिलना था मुझे सब
भाग्य से मैं पा गयी।
याद फिर तेरी अचानक
आज मुझको आ गयी।

अनकही बातों को कैसे
शब्द में ढालूँ भला !
स्वप्न तक में जो नहीं है
किस तरह पा लूँ भला !
ज़िन्दगी में इन दुखों को
खूब मैं भी भा गयी।
याद फिर तेरी अचानक
आज मुझको आ गयी।