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याद मुझे आते नाना जी / प्रकाश मनु

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चलो सुनाता हूँ एक किस्सा
प्यारे नाना जी थे मेरे,
लंबी-चौड़ी काया उनकी
दिन भर खूब लगाती फेरे।

बड़ी दूर जंगल-पर्वत से
घोड़ा दौड़ाते आते थे,
आए नाना, आए नाना
हम बच्चे तब चिल्लाते थे।

आँधी, पानी और बवंडर
रोक न पाते उनकी राह,
सरपट घोड़ा दौड़ा करता
देख सभी कह उठते वाह!

हमें घुमाते जंगल-जंगल
हरी घाटियाँ और पहाड़,
हँसती झीलें, हँसती नदियाँ,
फूलों वाले सुंदर झाड़।

सीना तान चला करते तो
खुद ही बन जाता था रस्ता,
सारा जंगल लगता उनको
खुशबू का प्यारा गुलदस्ता!

कभी राह मुश्किल आती तो
हँसकर कहते मेरा घोड़ा,
यह खाई भी पार करेगा
पहुँचेगा सीधा अलमोड़ा!

हम बच्चों पर प्यार लुटाते
गोदी में लेकर नाना जी,
और सुनाते किस्से जिनका
बड़ा गजब ताना-बाना जी।

नाना जी, अब चिज्जी दे दो
नाना जी, अब हमें घुमाओ,
नाना जी, अब ताना जी का
किस्सा फिर से हमें सुनाओ!

बड़ी गजब फरमाइश करती
हम बच्चों की बाँकी टोली,
नाना जी पर नाना जी थे
हँसकर भरते सबकी झोली।

चिज्जी देते और सुनाते
किस्से अजब-गजब वे भाई,
जिनमें उड़कर आता पर्वत
बबर शेर की आफत आई।

पुलपुल-पुलपुल हँसने वाली
एक कहानी थी भालू की,
पर्वत से जो लुढ़क पड़ा था
गोल-मुटल्ले से आलू की।

चलो-चलो, अब तुम्हें घुमा दें
हँसकर कहते थे नाना जी,
दुनिया यह कितनी सुंदर है
हमने तो बस, तब जाना जी।

कभी-कभी जब मैं डरता तो
खिल-खिलकर हँसते थे नाना,
कहते ना-ना, डर मत कुक्कू
गा कोई मस्ती का गाना।

घेली नानी मुझे दिखातीं
देखो, दरिया ऐसे बहता,
झरने यों झर-झर झरते हैं
जीवन तो बस चलता रहता।

नानी के संग हँसते नाना
साथ-साथ उनका वो घोड़ा,
पार समय की चट्टानों को
करता था जो सरपट दौड़ा।