भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
याद मुझे है अब तक / देवी नागरानी
Kavita Kosh से
वो अदा प्यार भरी याद मुझे है अब तक,
बात बरसों की मगर कल की लगे है अब तक|
हम चमन में ही बसे थे वो महक पाने को,
ख़ार नश्तर की तरह दिल में चुभे है अब तक|
जा चुका कब का ये दिल तोड़ के जाने वाला,
आखों में अश्कों का इक दरिया बहे है अब तक|
आशियां जलके हुआ राख, ज़माना गुज़रा,
और रह रह के धुआँ उसका उठे है अब तक|
क्या ख़बर वक्त ने कब घाव दिये थे ‘देवी’,
वक्त गुज़रा है मगर खून बहे है अब तक|