भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

याद रखोॅ / मृदुला शुक्ला

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नूनू तोहें हारियोॅ नै।
रात भले ही करिया होय
आरो सौंसे दुनियाँ सोय
बूलेॅ भले निशाचर कोय
आरो भले सियारे रोय
नूनू तोहें डरियोॅ नै।

धरती मेहनत माँगौ जों
गर्मी खूब सताबौ जों
दाना-पानी मिलौं नै जों
भुखलोॅ देहो हिलौं नै जों
श्रम सें कभियो हटियोॅ नै।
पेश पेॅ जखनी आफत आबेॅ
सीमा पर सेना मँडराबेॅ
माय-सिनी के लाल छिनाबेॅ
झुट्ठे नेतां शान दिखाबेॅ
तखनी पीछू हटियौ नै
नूनू तोहें हारियो नै।