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याद हैं क्या तुम्हे वो दिन - 1 / नीरजा हेमेन्द्र

मेरी स्मृतियों में
आज भी शेष हैं वे दिन
ताजे गुलाबों की
मादक सुगन्ध में भीगे
रक्ताभ पंखुड़ियों की भाँति
वे दिन जीवित हैं
मेरी शेष स्मृितयों में
ढ़लती साँझ के
गहराते अँधेरे में
मेरे समीप हैं मात्र
चारपाई पर बिछी
सिकुड़न युक्त चादर
पुरानी गंध से युक्त तकिया
सिराहने पड़ी कुछ दवायें
बूढ़े हो चुके मेरे बालों से
उठने वाली पुरानी गंध
मेरे मटमैले नेत्र
जो अब इस कमरे की किसी वस्तु को
देख पाने में अक्षम हैं
चम्पई रंगो वाली मेरी वो त्वचा
जिसकी तुलना तुम
उगते सूरज की लालिमा से करते थे
आज वो मोटी झुर्रियों से भर चुकी है
ऊर्जा व सौन्दर्य विहीन मेरी देह
मेरी स्मृतियों में शेष हैं
आज भी वो दिन
ताजे गुलाबों की पंखुड़ियों-से
भीनी सुगन्ध युक्त/ वे दिन
तुम्हारे प्रेम से भीगे
रंगीन फा़ख्ता के पंखों की भाँति
हवा में उड़ते से वे दिन
ढ़लती साँझ की इस निस्तब्ध्ता में
नीले तारों भरे आकाश से
अकस्मात् टूटते किसी तारे की भाँति
सम्मुख आ जाना
तुुम........मेरी स्मृतियों से निकल कर
साँझ के धुँधलके में
मुझे पहचान लेना
याद हैं क्या तुम्हे......वे दिन...