भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

याद हैं पहाड़ों से / रमेश रंजक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुझ को तोयाद हैं पहाड़ों-से
और पास आने के आमुख
याद तुम्हें भी हों शायद
छुअनों के एक-दो अदद
मुझ को तो याद हैं...

जाने क्यों बींध-बींध जाता मन
किरणों का महफ़िली सलाम
एड़ी का रगड़-रगड़ कर लिखना
रात गए पिंडली पर नाम

मुझ को तो याद हैं पहाड़ों से
दिन के लम्बे-लम्बे चाबुक
अपनी पीड़ा आदमक़द
याद तुम्हें भी हों शायद
छुअनों के एक-दो अदद
मुझ को तो याद हैं...