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याद हैं पहाड़ों से / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
मुझ को तोयाद हैं पहाड़ों-से
और पास आने के आमुख
याद तुम्हें भी हों शायद
छुअनों के एक-दो अदद
मुझ को तो याद हैं...
जाने क्यों बींध-बींध जाता मन
किरणों का महफ़िली सलाम
एड़ी का रगड़-रगड़ कर लिखना
रात गए पिंडली पर नाम
मुझ को तो याद हैं पहाड़ों से
दिन के लम्बे-लम्बे चाबुक
अपनी पीड़ा आदमक़द
याद तुम्हें भी हों शायद
छुअनों के एक-दो अदद
मुझ को तो याद हैं...