भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
याद हो गया / चित्रांश वाघमारे
Kavita Kosh से
ऐसा कैसे हुआ कि तुमको
मैं पूरा ही याद हो गया ?
ठीक ठीक मुझको पढ़ पाना
कठिन नही तो सरल भी नही,
मान रहा हूँ ठोस नही हूँ
लेकिन उतना तरल भी नही ।
बिल्कुल भी अनुमान न जिसका
ये कैसा अपवाद हो गया ?
दिखती है जो मेरे तन पर
एक अकेली सतह नही है,
मेरे तन पर रहने वाला
बिल्कुल मेरी तरह नही है ।
खुद से अलग थलग रहने का
मुझसे ही अपराध हो गया ।।
सब कैसे पहचाना तुमने
सिर्फ देखकर या फिर छूकर ?
भला हर्ष है या विषाद है
टपका जो आँखों से चू कर ।
आँखों ने आभास पढ़ लिए
भावों का अनुवाद हो गया ।।