भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
याद / शिवराज भारतीय
Kavita Kosh से
सगळा जाणैं
कै मिनख
पाणी वालो बुलबुलो
एक पग उठावै
दुजै री आस इज नीं
पण फैर बी
हाथ नै हाथ खावै
किण नै बी
‘नारायण इक मौत को
दूजे श्री भगवान’
चेतैं नीं आवै।