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यामिनी उबाल के / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
हम ने तो एक दिया बाल के
अधगीले गीत धर दिए ।
थके-थके पन्थी-सा सूनापन
ठहर गया ढूँढ़ कर सराय
कुहरे-सी भर गई निरुत्तरता
विष पी कर सो गए उपाय
साँसों से यामिनी उबाल के
दरवाज़े बन्द कर लिए ।
उतराई बूँद के सरोवर में
अपनी ही छुईमुई छाँह
सपनीली रेशमी उँगलियों से
थामी तो टूट गई बाँह
आँसू का बचपना सम्भाल के
सुधियों के नाम पर जिए ।