भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

यामिनी गाती है / अजय पाठक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रिय सुनो! यामिनी गाती है।

तारों का झिलमिल पहन वसन
नीरवता लेकर गहन-गहन
कोमल-सी मधुमय वाणी में, कुछ अनबोला कह जाती है।
प्रिय सुनो! यामिनी गाती है।

कोमल किसलय के मंजुल स्वर
नव गीत सुनाते झर-झर-झर
पल्लव के कोमल गातों को, लो देखो वह सहलाती है।
प्रिय सुनो! यामिनी गाती है।

जब मौन हृदय होकर उन्मन
जलता बुझता जैसे उड्गन
नेहों के आतुर प्राणों को, नवजातक-सा बहलाती है।
प्रिय सुनो! यामिनी गाती है।

धरती की सुंदर डोली में,
चकवों की विरही टोली में,
किरणों से अठखेली करती, आशायें भरकर जाती है।
प्रिय सुनो! यामिनी गाती है।

निश्चिंत मगन जब सोता है,
एकांत भुवन में होता है,
उनींदी अँखियों में सपनों के रंगों को बरसाती है।
प्रिय सुनो! यामिनी गाती है।