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यायावर हुआ वर ऐसा-ऐसा ! / भारत यायावर

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आत्म-कथा

भारत यायावर की कहानी
सोचता हूँ तो होती है हैरानी !

शुरुआत में साहित्यिक गोष्ठियाँ ख़ूब होती थीं । मैं उनमें बढ-चढ़ कर भाग लिया करता था । अख़बारों में उनकी रपट छपा करती थीं । पर मेरा नाम छपता था भारत आर्यावर्त । तो मित्रों मैं आर्यावर्त हुआ।

बहुत सारे लोग मुझे आया वर कह कर पुकारते । जब वर आया राम हुआ तो बंगाली मित्रों ने जाजा बर कहना शुरू किया ।

जब मेरी शादी हुई तो पत्नी ने मुझे प्यारा-सा वर माना । तब मुझे अच्छा लगा ।

लेकिन विनोबा भावे विश्वविद्यालय के जितने भी पत्र मुझे मिलते रहे हैं, उनमें मेरा नाम भारत ऐयावर लिखा मिला । और एक बार तो ऐयावर की जगह ऐरावत लिखा था ।

आरा के रहने वाले प्रसिद्ध कथाकार मधुकर सिंह ने मुझे कई बार समझाया कि सिंह टाइटिल ही ठीक है । यह ऐइआवर ठीक नहीं !

तो मित्रो ! मैं असमंजस में पड़ा था । तभी 1980 मेरी शादी करवाने के लिए मधुकर सिंह राजकमल प्रकाशन में काम कर रहे महेश नारायण भारतीभक्त से मिलवाने ले गए । उनकी बेटी से मेरी शादी नहीं हो पाई क्योंकि वे मेरे ही कुल-गोत्र के निकल गए । हमलोग परमार वंशी थे। वहीं मेरी पहली बार भेंट नागार्जुन से हुई ।उन्होंने यात्री बनकर यायावर को अपनाया ।

और जब अज्ञेय से पहली बार भेंट हुई तो उन्होंने कहा कि वे मुझसे मिलने हजारीबाग आने की योजना बना रहे थे। मैंने जब पूछा, क्यों? तो उन्होंने कहा कि मुझसे मिलने का बहुत मन था। मैंने कहा, अरे यायावर रहेगा याद !

यह मेरे जीवन का वर था कि नागार्जुन और अज्ञेय ने मेरा वरण किया । और जीवन में क्या चाहिए !

लेकिन वर शब्द को लेकर नामवर सिंह की बात मैं भूल नहीं पाता । वे 2000 ई0 में धनबाद आए थे ।उन्होंने कहा था कि नामवर और यायावर में जो वर है, वही वर हमलोगों के सम्बन्ध और आत्मीयता का कारक है ।

लेकिन एक बन्धु ऐसे थे जो य को च जैसा लिखते थे । उन्होंने जब मुझे पत्र लिखा तो चाचावर पढ़कर मैं खिलखिला कर हंस पड़ा था और जब भी उस मित्र की याद आती है, आज भी चाचावर शब्द की याद आती है और मुस्कुरा पड़ता हूँ ।