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यार! इस से बड़ा हादिसा कुछ नहीं / दीपक शर्मा 'दीप'
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यार! इस से बड़ा हादिसा कुछ नहीं
कि हुआ हादिसा ओ हुआ कुछ नहीं
पूछते थक गए क्या हुआ,आख़िरश
लब खुले और उसने कहा कुछ नहीं
मश्ग़ला-मश्ग़ला-मश्ग़ला-मश्ग़ला
दिलपज़ीरों की बाक़ी दवा कुछ नहीं
सानिहा की तरफ़ है मुसलसल रवां
और इसके सिवा इब्तदा कुछ नहीं
रोकते हैं उन्हें 'दीप' क्यों किसलिए?
रोकने से कभी कुछ हुआ? कुछ नहीं..