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यार निकला है आफ़्ताब की तरह / हातिम शाह
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यार निकला है आफ़्ताब की तरह
कौन सी अब रही है ख़्वाक तरह
चश्म-ए-मस्त-ए-सियह की याद मुदाम
शीशा-ए-दिल में है शराब की तरह
कभू ख़ामोश हूँ कभू गोया
सरनविश्त है मिरी किताब की तरह
पस्त हो चल मिसाल दरिया के
ख़ेमा बरपा न कर हबाब की तरह
पा-बोसी कूँ उस का है गर शौक़
क़द कूँ अपने बना रिकाब की तरह
साफ़ दिल है तो आ कुदूरत छोड़
मिल हर इक रंग बीच आब की तरह
पीवे पीवे है शबाब ‘हातिम’ साथ
क्यूँ न दुश्मन जले कबाब की तरह