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यार ने इस दिल-ए-नाचीज़ को बेहतर जाना / लाला माधव राम 'जौहर'
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यार ने इस दिल-ए-नाचीज़ को बेहतर जाना
दाग़ को फूल तो क़तरे को समुंदर जाना
कट गए देखते ही हम तो तिरी चश्म-ए-ग़ज़ब
जुम्बिश-ए-अबरू-ए-ख़मदार को ख़ंजर जाना
सच है यकसाँ है अदम और वजूद-ए-दुनिया
ऐसे होने को न होने के बराबर जाना
आँख हम बादा-कशों से न मिला ऐ जमशेद
अपने चुल्लू को तिरे जाम से बढ़कर जाना
कब ज़माने में है मोहताज-ए-मकाँ खाना-ख़राब
हो गई दिल में किसी के जो जगह घर जाना
समझे ‘जौहर’ को बुरा उस की शिकायत क्या है
वही अच्छा है जिसे आप ने बेहतर जाना