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यार पुराने छूट गए तो छूट गए / जतिन्दर परवाज़
Kavita Kosh से
यार पुराने छूट गए तो छूट गए
काँच के बर्तन टूट गए तो टूट गए
सोच समझ कर होंट हिलाने पड़ते हैं
तीर कमाँ से छूट गए तो छूट गए
शहज़ादे के खेल खिलोने थोड़े ही थे
मेरे सपने टूट गए तो टूट गए
इस बस्ती में कौन किसी का दुख रोए
भाग किसी के फूट गए तो फूट गए
छोड़ो रोना धोना रिश्ते नातों पर
कच्चे धागे टूट गए तो टूट गए
अब के बिछड़े तो मर जाएंगे ‘परवाज़’
हाथ अगर अब छूट गए तो छूट गए