भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यार यारों का खास यार हूँ मैं / सुरेन्द्र सुकुमार
Kavita Kosh से
यार यारों का खास यार हूँ मैं
और पतझड़ में भी बहार हूँ मैं
मेरे मौला नवाज़ दे मुझको
तेरी रहमत का तलबगार हूँ मैं
मैंने अब तक नहीं ख़ुद को समझा
और कहता हूँ कि समझदार हूँ मैं
असली धन्धा है रहज़नी का सुनो
यों वो कहते हैं कि शहरयार हूँ मैं
जैसे चाहो मुझे महसूस करो
फूल भी हूँ मैं और खार हूँ मैं
मैं बाहर से तो सुनो मुक़म्मल हूँ
मग़र भीतर से तार-तार हूँ मैं
मैं तो अक्खड़ हूँ बहुत बचपन से
लोग कहते हैं कि सुकुमार हूँ मैं