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यास्लो के निकट अकाल शिविर / विस्साव शिम्बोर्स्का / विनोद दास

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यह लिख लो,मामूली कागज़ पर
मामूली स्याही से लिख लो — उन्हें खाना नहीं दिया गया
वे सब भूख से मर गए — हाँ ! सबके सब मर गए। मगर वे कितने थे ?
यह एक बड़ा घास का मैदान है — हर आदमी के हिस्से में कितनी घास आएगी ?
लिख लो : मैं नहीं जानता
इतिहास में कँकालों की गिनती शून्य को पूर्णांक मानकर की जाती है ।
वहाँ एक हज़ार एक को केवल एक हज़ार माना जाता है
वह एक आदमी वहाँ ऐसे होता है गोया वह कभी था ही नहीं
क्या पेट में वह बच्चा फर्ज़ी था ?
उस पालने में क्या कोई नहीं था ?
क्या किसी के लिए प्रवेशिका की किताब के सफ़े नहीं खोले गए थे ?
क्या हवा में कोई किलकारी नहीं गूँजी थी और न ही कोई रोया था ?
क्या कोई बड़ा नहीं हुआ था ?
बग़ीचे में खुलनेवाली सुनसान सीढ़ियों के
किसी पायदान पर क्या किसी ने उसे नहीं देखा था ?

इसी घास के मैदान पर
वह हाड़-मांस का आदमी बना
लेकिन घास का मैदान
उस गवाह की तरह ख़ामोश है जिसे ख़रीदा जा चुका हो

धूप है, हरियाली है
लकड़ियाँ चबाने के लिए
पास में जँगल है
पीने के लिए
दरख़्तों की छाल से रिसती बून्दें हैं
यह नज़ारा दिन-रात चलता रहता है
जब तक कि तुम अन्धे न हो जाओ
ऊपर उड़ते एक परिन्दे के मज़बूत पंखों की छाया
उनके होठों पर फड़फड़ा रही है
जबड़े नीचे लटक गए हैं
दाँत खटखट कर रहे हैं

रात में एक हंसिया आसमान में चमक रहा था
रोटी का सपना देखनेवालों के लिए
अन्धेरे की फ़सल काट रहा था
काले बुतों जैसे आदमियों के हाथ लहरा रहे थे
हर हाथ में एक ख़ाली कटोरा था

कटीले तारों के जँगले पर
एक आदमी झूल रहा था
धूल भरे मुँह से कुछ लोगों ने गाना गाया
ज़ंग के खिलाफ़ वही प्यारा-सा गाना
जो सीधे दिल पर लगता है
लिखो ! इसमें कितनी शान्ति है
हाँ ! शान्ति !

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास