यास्वो के समीप भुखमरी कैम्प / विस्साव शिम्बोर्स्का
लिख लो । लिखो इसे । आम स्याही से
आम कागज़ पे, उन्हें खाना नहीं दिया गया था,
वे सब भूख से मर गए । सब । कितने थे ?
घास का मैदान काफी बड़ा है । कितनी घास
हिस्से आई होगी हरेक के ? लिख लो : मैं नहीं जानता ।
इतिहास गोल कर देता है कंकालों का हिसाब ।
एक हज़ार एक भी हज़ार ही गिने जाते हैं ।
वह एक तो जैसे कभी था ही नहीं :
एक फ़र्ज़ी भ्रूण, एक खाली पलना,
एक क़ायदा जो खुला नहीं किसी के लिए,
हवा जो हँसती, रोती, और बढ़ती है,
शून्य को जाती सीढ़ियाँ जो पहुँच जाती हैं बग़ीचे में
कतार में वह स्थान जो किसी का भी नहीं है ।
ठीक यहीं वह बना एक देह, इस घास के मैदान में ।
मगर ख़रीदे हुए गवाहों की तरह, मौन है मैदान ।
धूप में नहाया. हरा । पास ही में जंगल है
जिसमें थी चबाने के लिए लकड़ी,
पीने के लिए थी छाल के नीचे एकत्रित पानी की बूँदें --
एक सुन्दर दृश्य हाथ बाँधे खड़ा रहता था हर समय
जब तक कि आप अन्धे न हो जाएँ. ऊपर, एक पंछी
जिसकी छाया फिराती थी अपने पौष्टिक पंख
उनके होंठों पर. जबड़े खुल जाते थे,
दाँत किटकिटाते थे ।
और रात को एक हँसिया चमकती थी आकाश में
और काटती थी अँधेरा, सपनों में देखी रोटियों के लिए ।
ईश्वर के झुलसे हुए प्रतिरूपों से निकल-निकल आते थे हाथ
पकड़े हुए एक रीता चषक ।
एक आदमी लड़खड़ा गया
कँटीली तार पर ।
कुछ ने मुँह में मिटटी लिए, गीत गाया. वह प्यारा-सा गीत
जो कहता है कि युद्ध करता है प्रहार सीधे दिल पर ।
लिखो सब कितना शान्त है ।
हाँ ।