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यास के थपेड़ों से आस को बचा कर रख / ज़ाहिद अबरोल

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यास के थपेड़ों से, आस को बचा कर रख
पत्थरों की बारिश में, आईनः छुपा कर रख

जाने कौन, कब, किस पर, छुप के वार कर बैठे
ऐसे दौर में ख़ुद को, सब से तू बचा कर रख

मेज़ पर यह मुरझाए, फूल मुंह चिढ़ाते हैं
महव-ए-यास गुलदां में, ताज़ः फूल ला कर रख

राह भूल कर इस जा, कोई आ भी सकता है
घर के इस बियाबां को, कुछ तो तू सजा कर रख

रूठ कर न जाने कब, माइके चली जाए
ज़िन्दगी को ऐ “ज़ाहिद”, दिल से तू लगा कर रख

शब्दार्थ
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