याही को पठाई बड़ो काम करि आई बड़ी ,
तेरी है बड़ाई लख्यो लोचन लजीले सोँ ।
साँची क्योँ न कहै कछु मोको किधौँ आपु ही को ,
पाई बकसीस लाई बसन छबीले सोँ ।
कवि मतिराम मोसो कहत सँदेसो ऊन ,
भरे नख शिख अँग हरख कटीले सोँ ।
तू तो है रसीली रस बातन बनाय जानै ,
मेरे जान आई रस राखि कै रसीले सोँ ॥
मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।