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या कि होगा / कात्यायनी
Kavita Kosh से
एक दिन
पर्यावरण की सुरक्षा पर
कोई कार्यक्रम नहीं हुआ।
जनसंख्या-विस्फोट पर
नहीं प्रकट की गई कोई चिन्ता।
कला की शर्तें
पूरी करने के लिए
नीलामी नहीं बोली गई
सच की, या ईमान की
एक दिन
मृत्यु नहीं हुई किसी कवि की
या कविता की
नहीं बैठा कोई विद्वान
किसी पूर्वज की पीठ पर
न ही कोई पुरस्कार बँटा
न तालियां बजीं।
उस दिन
कानून-व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त
करने की
कोई नई कोशिश नहीं हुई
न कोई हत्या, डकैती, राहजनी हुई
न कोई व्यापार-समझौता।
उस दिन
नहीं छपे पूरी दुनिया के अख़बार।
अद्भुत था वह एक दिन
जो नहीं था
वास्तव में कभी
पर सोचते हैं सभी
कि था कभी ऐसा एक दिन
जीने के वास्ते
या कि होगा?