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या दिल ही मेरा जाने या मेरा ख़ुदा जाने / कांतिमोहन 'सोज़'

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या दिल ही मेरा जाने या मेरा ख़ुदा जाने ।
किस-किसके जरायम के भरता रहा जुर्माने ।।

हम पर भी वही बीती जो सब पे गुज़रती है
लूटा किए सब अपने बख्शा किए बेगाने ।

क्या राहनुमा अपने इस मुल्क ने पाए हैं
वीरां हुई हर बस्ती बसने लगे वीराने ।

कुछ अपनी कमी है कुछ माहौल भी ऐसा है
यां लाख सयाने भी हो रहते हैं दीवाने ।

जो आलिमो-फ़ाज़िल थे वो चल दिए अमरीका
ख़ाली हुए काशाने भरने लगे तहख़ाने ।

अब हिन्द के ब्योपारी लूटेंगे विलायत को
घर में हैं नहीं दाने अम्मां चली भुनवाने ।

अब कोई भला समझे या कोई बुरा माने
लो सोज़ तो चलता है अब उसकी बला जाने ।।