भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

या पंचाती धरमसाला क्यूं करदा झूठी मेर रे / हरियाणवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

या पंचाती धरमसाला क्यूं करदा झूठी मेर रे
पांचां पै तनै लई मांग कै सुकरम भोत कमाऊंगा
दूसर भगती करूं परेम तै हर के दरसन पाऊंगा
नित रहूं हरी का पाली क्यूं धरदा झूठी मेर रे
या पंचाती धरमसाला...
याहदी ब्याह्दी दूत भेज के पांचो तनै समझाते हैं
करणा हो सो कर ले रे बंदे कार करे दिन आते हैं
घर खो सै न ततकाल क्यूं करदा झूठी मेर रे
या पंचाती धरमसाला...
पांचों पंच करेंगे दावा लेखा हो दरबार रे
जिब तेरे पै मार पड़ेगी झूठा पड़ै करार रे
झूठा का मुखड़ा काला रे क्यूं करै झूठी मेर रे
या पंचाती धरमसाला...
जिन खातर तैं पच पच मरदा वे सब धौरे धर जांगे
जिब तेरे पै बखत पड़ैगा सारै धोखा कर जांगे
तब होगा देस निकाला क्यूं धरदाा झूठी मेर रे
या पंचाती धरमसाला...
तेरै देखत कितणे हो लीए हो हो कै सब चले गए
ना कोए रह्या ना कोए रहण पाया काल चाक्की में दले गए
चातर दलन आला क्यूं करदा झूठी मेर रे
या पंचाती धरमसाला...