भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
या बस सन्नाटा बाँटा / विजय वाते
Kavita Kosh से
					
										
					
					आओ देखें हमने अब तक किस किस को क्या बाँटा 
हमने कुछ दर्द बताए या बस सन्नाटा बाँटा
बाँट छूट कर रोटी सब्जी खाना जिसने सिखलाया 
मान वो किसके हिस्से आई जब था दरवाज़ा बांटा
आग लगी थी शहर में जब जब गली मोहल्ले थे भूखे 
तब हमने आगी ही बाटी या थोड़ा आता बाँटा
कुछ सपने घर में पलते थे कुछ आये डोली के संग 
सास बहूँ ननदी भाभी  नें क्यों घर का चूल्हा बाँटा 
नदियाँ नाले, झील समंदर ताल तलैया का पानी 
हमने बाँटा इन सब ने कब था अपना कुनबा बाँटा
 
	
	

