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युगल छवि / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान
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एक हाथ धरैय रामा मटुकी के कोरवा हो।
दोसर मोहन गले डारैय हो सांवलिया॥
बहियाँ में शोभैय रामा लाली पीली फुदना हो।
कंगना अनूप रंग लागैय हो सांवलिया॥15॥
एक हाथ धरैय रामा मटुकी के कोरवा हो।
दोसर मोहन गले डारैय हो सांवलिया॥
बहियाँ में शोभैय रामा लाली पीली फुदना हो।
कंगना अनूप रंग लागैय हो सांवलिया॥15॥
बारी रे उमीरिया के गोरी कारी जोरिया हो।
देखत कि अँखियां अघावै हो सांवलिया॥
नाचत गावत अरु बांसुरी बजात रामा।
गैया कन्हैया ले ले आवैय हो सांवलिया॥16॥
मलय वियार बहैय उड़ि उड़ि धूल परैय।
झुंड झुंड गैया घर आत हो सांवलिया॥
थकी थकी सुरत निहारेय ‘कछुमनमा’ हो।
युगल मुरत चित लावेय हो सांवलिया॥17॥