भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
युगांत / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
खंजन नें
खंजनी सें कहलकै
जेकर संवेदा मैर गेलै
आँसू सूख गेलै
जे मानवता भी भूल गेलै
आयकल
वहै आदमी कहाबै छै।