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युग-बोध / सुशान्त सुप्रिय
Kavita Kosh से
मेरे दादाजी अक्सर
अपरिचित लोगों के
सपनों में
चले जाते थे
वहाँ दादाजी
उन सबसे
घुल-मिलकर
खुश हो जाते थे
मेरे पिताजी के
सपनों में
अक्सर अजनबी लोग
खुद ही चले आते थे
पिताजी भी
उन सबसे
घुल-मिलकर
खुश हो जाते थे
मैं किसी के
सपनों में नहीं जाता हूँ
न ही कोई मेरे
सपनों में आता है
मैंने अपने सपनों के द्वार पर
' यह आम रास्ता नहीं है ' का
बोर्ड लगा रखा है
मेरे समकालीनों के
सपनों के दरवाज़े पर
' कुत्तों से सावधान ' का
बोर्ड लगा हुआ है