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युग कवि से / महेन्द्र भटनागर

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ऐसे गीत नहीं गाने हैं !

जो गति का साथ नहीं देंगे
गिरते को हाथ नहीं देंगे
निर्धन त्रास्त उपेक्षित व्याकुल
जनता के भाव नहीं लेंगे,
युग कवि ! तुमको हरगिज़, हरगिज़
ऐसे गीत नहीं गाने हैं !

भूल जगत, मानव-आवाहन
सर्वस्व समझ नभ-आकर्षण
पहले तारक-दल का सुनना
मूक स्वरों का मौन-निमंत्रण,
सपनों के निर्जीव अचेतन
माया गीत नहीं गाने हैं !

जिनमें जीवन का वेग नहीं
दुनिया जिनकी है दूर कहीं
जो मनुज-हृदय को शिथिल करें
जो बदल न पाएँ रूढ़ मही,
उर उत्साह मिटाने वाले
रोदन गीत नहीं गाने हैं !

नक़ली भावों के हलके स्वर
क्या हुए कभी भी कहीं अमर
जब तक सुख-दुख का अनुभव कर
न कहोगे जीवन-सत्य प्रखर,
अनुभूतिहीन मन से निकले
थोथे गीत नहीं गाने हैं !