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युग गीत / चंद ताज़ा गुलाब तेरे नाम / शेरजंग गर्ग
Kavita Kosh से
सौ-सौ प्रतीक्षित पल गए
सारे भरोसे छल गए
किरणें हमारे गाँव में
खुशियाँ नहीं लाईं।
महका नहीं मुरझा हृदय
चहकी नहीं कुछ ताज़गी,
मानी नहीं, मानी नहीं
पतझार की नाराज़गी
मरते रहे, खपते रहे
प्रतिकूल धारों में बहे
लेकिन सफलता दो घड़ी
मिलने नहीं आई
अपना समय भी खूब है
भोला सृजन जाये कहाँ
छलछद्म तो स्वाधीन हैं
ईमान पर पहरा यहाँ
औ’ इस कदर गतिरोध पर
जग वृद्ध के मतिरोध पर
नाराज़ बिल्कुल भी नहीं
नादान तरुणाई।
पर खुदकुशी होगी नहीं
छायी रहे कितनी ग़मी
हर एक दुख के बाद भी
जीवित रहेगा आदमी
हर लड़खड़ाते गान को
गिरते हुए ईमान को
अक्षर किसी दिन थाम लेंगे
प्रेम के ढाई!