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युग बीता / हम खड़े एकांत में / कुमार रवींद्र

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युग बीता
जब मर्यादा थी रामराज की

सत होता था
तबके संतों की बानी में
तारन की तासीर रही थी
गंगा-सरयू के पानी में

महिमा तब तक
नहीं हुई थी पर-अकाज की

एक नया इतिहास
रचा जा रहा समय का
वातावरण गया है सिरजा
रजधानी में केवल भय का

डरे कबूतर
मुसाहिबी कर रहे बाज़ की

संत हुए ठग
उनने रची नई रामायन
लवकुश द्वारा सभागार में
होता है उसका ही गायन

शाह चतुर हैं
चिंता उनको सिर्फ़ ताज़ की