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युग सम बीत रहा क्षण-क्षण / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
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युग सम बीत रहा क्षण-क्षण
नहीं दर्द को कहीं शरण
क़दम-क़दम पर रावण हैं
रोज़ हो रहा सिया-हरण
बाड़ खेत को निगल रही
कैसे हो उसका रक्षण
अन्धकार ने कर डाला
सभी उजालों का भक्षण
चोटों से घबराना क्या
जीवन है रण का प्रांगण
कष्टों से जूझा उसका
विजय-वधू ने किया वरण
धन के पीछे पागल हो
मत कर निर्धन का शोषण
ओ मंज़िल के दीवाने
पथ में ही मत रोक चरण
कितनी कोशिश करो कभी
झूठ नहीं कहता दर्पण
निर्मल मन करना है तो
कर दोषों का अनावरण
भीरू मौत से डरते हैं
वीरों का त्यौहार मरण
चन्दन पावक बन जाता
करने पर अति संघर्षण
छल में लिपटा हुआ मिला
गोरे तन का आकर्षण
देश अगर संकट में हो
तन-मन-धन कर दो अर्पण
मातृभूमि का ‘मधुप’ सदा
वन्दनीय होता कण-कण