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युद्ध-क्षेत्र पर / महेन्द्र भटनागर

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खंडहर हैं, खंडहर हैं, खंडहर !
शिलाएँ टूटतीं भू पर !

भयंकर ध्वंस निर्मम,
धूम्र-तम है,
अग्नि की भीषण शिखाएँ लाल
इधर-उधर !
कि कर्ण परदा फाड़ता है स्वर !

मिटाता साथ में सब
खेत, गृह, अट्टालिकाएँ, जीर्ण कुटियाँ,
क्रूरता, विस्फोट,
बॉम्ब को पटक,
झपट लटक उतर पेराशूट से
ले शीघ्र निर्मम
नाश के कटु यंत्र,
ये सब भूत से बन
मानवों के पूत,
ख़ाकी वर्दियों में रौंदते हैं
वक्ष दुनिया का।
आँसू रक्त की है धार !
सारा लाल है संसार !
चारों ओर धुआँ-धार !