युद्ध और युद्ध / श्याम बिहारी श्यामल
अभी ज़िंदा है सोता
बची हुई है धार
सलामत है अब भी
भाषा की टकसाल
क़लम जन रही है
कविताएँ उसी तरह
उदार बना बिछा है
अब भी आकाश
तमाम हमलों के बाद भी
यह सलामती
लाएगी ज़रूर रंग
बाक़ी है
अभी बाक़ी है जंग
आती है
बहुत बेहयाई से ढीठ जमात
कायर दरिंदों की तनकर
बड़ी-बड़ी चमकती गाड़ियों में लदकर
गींजती है बेदर्दी से गाँव
बकोटती-खंखोरती है बस्ती को
और लौट जाती है राजधानी
अपनी हिंसा लहराती
सुहावने स्लोगन गाती-सुनाती हुई
आँधी की ज़िंदा है नस्ल
हौसला है क्षितिज का बुलंद
पूरी तरह याद है
पेड़ों को वह सौगंध
मारा नहीं गया
अफ़वाहों के घमासान में परबत
बाल-बाँका भी नहीं हुआ सूरज का, चाँद का
कैसी खिली हैं बाँछें धूप की, चाँदनी की
कुछ सोचते हैं आप !
क्या हालत होगी
सदी की छाती पर दहाड़ती शेरनी की !