युद्ध की कविता / विजय चोरमारे / टीकम शेखावत
चिट्ठी देने के लिए आया पोस्टमैन
कारगिल का पता पूछने लगा
तब समझा कि
शुरू हो गया है युद्ध !
तब तक कभी महसूस नहीं हुई
घूसखोरी इतनी सीरियस
रोज़ धमाल मचता था टी० वी० पर
युद्ध के समाचार सुनते
और युद्धभूमि से सीधे प्रसारित क्लिपिंग देखते
टी० वी० पर नहीं दिखी आमने-सामने की लड़ाई कभी
रोज़ वही एक तोप
और पीठ पर वजन ढोते
चोटी की तरफ दौड़ते हुए सैनिक
पेट की खातिर सेना में भरती हुआ
अपने गाँव वाला बजरंग दिखा क्या कहीं पर
बड़ी बारिकी से मैं खोजता रहता उसे टी० वी० पर
फिर उकता गया सबसे
तब भी
हर एक ख़बर देखनी ही पड़ती थी
प्रिय देश के खातिर
हड़कम्प मचा दिया था अख़बारों ने
हर एक पन्ने पर युद्ध के क़िस्से-कहानियाँ.....
दिलीप कुमार, शबाना आज़मी, आमीर खान से
जबरदस्ती बुलवाई गई देशप्रेम की बातें
वीरगति को प्राप्त सैनिकों की
व उनके परिजनों की
दिल दहला देने वाली कहानियाँ....
‘शादी तय हुई ही थी कि बुलावा आ गया’
‘देह पर लगी हल्दी अभी तक सूखी भी नहीं थी’
स्मृतियों का कोलाहल और मात्र कोलाहल
पीछे छूट गए बाल बच्चो के लिए
चार दिन सराहना के,
शौर्य के, प्रशस्ति गान के
जब अपने जवान वीरगति को प्राप्त हो रहे थे
तब उस पार वाले भी मर रहे थे,
कुत्ते की मौत
जवाबी कार्रवाई में!
उनके रिश्तेदारों के साक्षात्कार
नहीं पढ़ने में आए कभी
ग्लोबल विलेज में
मरणोप्रान्त मिलने वाले विशेषण
करते रहे कोलाहल मन के भीतर
मरने के बाद भी
क्या होते हैं इनसानों के रास्ते अलग-अलग?
मन में उठा प्रश्न जब हैरान करने लगा
तब मुझे ही
मेरे
देशप्रेम पर शक होने लगा?
मूल मराठी से अनुवाद — टीकम शेखावत