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युद्ध के समय / रश्मि रेखा

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सब कुछ नहीं जाना जा सकता युद्ध के समय
नहीं लगाया जा सकता हर चींज का पता सही-सही
ज़रूरी नहीं वही हो सच
जो हमें दिखाया जा रहा है

मौत जिनको समेत कर ले गई अपने आगोश में
छोड़ती हुई शहादत की अमिट कथाए
देश-भक्ति के उफनते सैलाब में

तमाम सुरक्षा कवचों के बीच
सिंहासन से शहीदी मुद्रा से
लगातार प्रवाहित हो रहा है प्रवाचन

मातमी धुन के बीच मुझे सुनाई देता है
परिजनों का विलाप
तिरंगें में लिपटा शरीर देख रदी हूँ
सैनिक बेवाओं की बदहवास आँखों से
केवल देश का भविष्य नहीं
मौत ले गई है छीन कर
उनकी ज़िन्दगी के सारे सुन्दर अर्थ

उत्सवी भीड़ को ताकती मासूम आँखें
नहीं जानती क्या खो गया है उनका
आगे ज़िन्दगी के बीहड़ रास्तों में
जब सबसे ज्यादा ज़रूरत होगी उनकी
तब केवल तस्वीरों में मिलेंगे सुन्दर पिता
मुस्कुराते रोबीली फ़ौजी पोशाकें पहने

क्या सही है क्या ग़लत
सब कुछ तय नहीं किया जा सकता
युद्ध के समय
ज़रूरी नहीं चीजें वहीं हो
जहाँ चाहते हैं हम इन्हें रखना