भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
युद्ध घोष / लोकगीता / लक्ष्मण सिंह चौहान
Kavita Kosh से
चलु चलु कुरुक्षेत्र दुवो दल बोलैय रामा।
युध करु छतरी के लाल हो सांवलिया॥
चम चम करैय रामा ढ़ाल तरवरवा हो।
भाला बरछा तिरवा कमान हो सांवलिया॥
हाथी घोड़ा रथ आरु पैदल पलटनमा हो।
जुटै लगलैय चींटी सन धार हो सांवलिया॥
हाथियों चिंघार करैय घोड़वो फुर्राय हो फानैय।
आँधियो उगबैय रथ आबैय हो सांवलिया॥