युद्ध पुत्रियाँ और तितलियाँ / दीप्ति पाण्डेय
मुझे क्षमा करना मेरे साथी
मैं नहीं उगा पाऊँगी उन स्त्रियों को
अपनी कविताओं के खेतों में
बथुआ और गाजर घास की तरह
जो युद्धरत भूमि में
धूल पर खून गिरने से जन्मी थीं
इसलिए तुम्हारी कविता को सिरे से नकारती हूँ मैं
इतिहास में दर्ज है कि -
खेतों में तितलियों के पीछे दौड़ते -दौड़ते
अनजाने युद्ध का हिस्सा बन जाने वाली गुड़ियाएँ
अपनी कोख को सहलाते हुए
अपनी दादियों, माँओं की वीरता के किससे सुनाती थीं
ओ मेरी आजाद तितलियों -
मेरी माँ आग से बनी थी
वो चूल्हे के धधकते अंगारों के बीच से
रोटी को जलने से बचा सकती थी
धूल और खून से जन्मी ये युद्ध पुत्रियाँ
फिर जन्मती हैं - तितलियाँ
नहीं- नहीं, कैद तितलियाँ
मुझे माफ करना प्रिय,
मैं भी युद्ध से जन्मी हूँ
विशेषाधिकारों और उपेक्षाओं के द्वन्द्व की ज़मीन पर
अभी मीलों लम्बी यात्रा पर जाना है मुझे
मेरा सामान मुझे ही तय करना होगा
तुम्हारी थोपी गई दया और असमानता को
अब नहीं ढो पाऊँगी मैं
मेरी कविताओं की देहरी से भीतर
आ सकते हो तुम भी बेहिचक
बाच सकते हो अपनी नई कविता - स्त्री विमर्श पर
मैं सुनना चाहती हूँ एक पुरुष देह से स्त्री मन को
आना मेरे साथी
लेकिन आधे मत आना
अपने भीतर एक बटा दो स्त्री भी लाना