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युद्ध से बची / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
जो विकल हैं पल-प्रतिपल
कि बचा रहे पेड़ों में रस
नदियों में जल
और सूरज में ताप
कि बचा रहे तितलियों में रंग
पंछियों में कलरव
और बच्चों में गान
कि बचा रहे पृथ्वी का स्वप्न
सृष्टि का संगीत
और दुनिया का वारिस
युद्ध से बची इस पृथ्वी को मैं सौंपता हूं
मरा नहीं जिनका यह दिवास्वप्न