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युद्ध हुआ तो कौन मरेगा ? / विहाग वैभव
Kavita Kosh से
उन बेकस मज़दूरों के लड़के
जिनके घर रोटी का सोता एक यही है
जिनकी बहनें अभी-अभी स्कूल गई हैं
जिनकी घर में अभी अभी बिजली आई है
जिनके बाप युगों से अब तक
धरती पर जुतते आए हैं
जिनकी माएँ हर धूप-छाँव सह
सुबह- शाम खटती आई हैं
जिनके बाबा पिछली सदी की
कोइलरी में दफन हुए थे
जिनके पुरखे पिछले दशक तक
ठाकुर के घर बँधे हुए थे
जिनके सर से अभी-अभी सेहरा उतरा है
जिनकी बीवी अभी-अभी तो तन जानी है
जिनके घर में अभी-अभी बेटा जन्मा है
जिनके आँगन अभी एक बेटी आनी है
भूख से लड़कर बड़े हुए जो
जिनकी आँखों में हुसैन थे
जिनकी उँगली चित्रकार थी
अब उनके हाथों बन्दूकें हैं
मेरे साथी, अपने भाई, यार हमारे
यही मरेंगे, यही मरेंगे, यही मरेंगे ।