युद्ध के विरुद्ध हैं सदैव हम
रुद्ध करता है वो विकास को
जन्म देता हर तरफ विनाश को
जन्म देता भूख और संत्रास को
किन्तु होता है कभी अनिवार्य भी
युद्ध होता है तभी स्वीकार्य भी
जब हो अत्याचार के प्रतिकार के लिये
लुट रहे स्वत्व और अधिकार के लिए
दुष्ट दानवों के संहार के लिये
और मातृभूमि के उद्धार के लिये
पाप नहीं, पुण्य होता युद्ध वो
न्याय के लिये है प्रतिबद्ध जो
इसलिये
यंत्रणाओं, यातनाओं के विरुद्ध युद्ध कर!
आतताई अपदाओं के विरुद्ध युद्ध कर!
बलात्कारी शक्तियों के विरुद्ध युद्ध कर!
स्वयंभू आक्रान्ताओं के विरुद्ध युद्ध कर!
शहीद की गुहार है
न्याय की पुकार है
जाग साथी! धर्म धर
निर्भय हो, हो निडर
एकता के वास्ते
न्याय समता के लिये
स्वतंत्रता के वास्ते
युद्ध कर! युद्ध कर!! युद्ध कर!!!