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युद्ध / मिथिलेश श्रीवास्तव

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सबने कहा युद्ध अब कहीं नहीं है
एक अरसे से युद्ध की ख़बर मैंने पढ़ी नहीं कहीं
सोए हुए लोग युद्ध नहीं बड़बड़ाते
युद्ध के नए टीकाकारों ने कहा युद्ध जो
लड़े गए थे वे दरअसल शान्ति की कोशिशें थीं

तब भी मेरे भीतर क्यों रहती है एक युद्ध के रूकने की प्रतीक्षा ?

बैसाखियों के सहारे डगमगाते सिपाही की
मूँछों पर उँगलियाँ फेरते ही दिख जाता है
बीता हुआ कोई युद्ध
एक युद्ध दिखता है
मेज़ और तालियों की थपथपाहट के बीच
युद्ध पर होने वाले ख़र्चें की घोषणाओं में

भूखे लोगों के पेट पर खाने के पैकेट गिराते
हेलीकाप्टरों के लम्बे डैनों
और लाख कोशिश के बाद भी खाने के पैकेट का
किसी बंजर ज़मीन या बहते पानी की सतह
या लालची निगाहों की पुतलियों पर
गिरने में मुझे युद्ध दिखता है ।

युद्ध दिखता है हवाई-अड्डों पर
हथियारों के सुन्दर और रंगीन कैटलॉग हाथ में लिए
उतरने वाले बहुराष्ट्रीय दोस्तों की मुस्कराहट में

हथियार ख़रीदने के लिए
हम अपनी भाषा को आज़माते हैं सबसे पहले
भाषा हथियार ख़रीदने में मददगार नहीं होती
हथियार बेचने वाले की भाषा हम सीख लेते हैं
इस नई भाषा में मुझे युद्ध दिखता है

सबसे आसान है
हथियार के लिए कर्ज़ पाना
जैसे हमारे पूर्वज देते थे कर्ज़ अपने लोगों को
अपनों के साथ मुक़दमा लड़ने के लिए
शान्ति के प्रयासों में निकले लोग
हथियार ख़रीदकर लौट चुके हैं
बार-बार वे कहते हैं
कि हम तैयार हैं -- कानों में सुनाई देता है किसी युद्ध का लम्बा वर्णन

काम पर जाते लोग यात्रा के दौरान झपकियाँ
लेते हैं
झपकियों में एक युद्ध से लौटने की थकान होती है ।