युवकसँ - १ / कांचीनाथ झा ‘किरण’
हाय! हम मैथिल अभागल,
जानि नहि एहि बुद्धिमे अछि कोन रूपक घून लागल।
क्रान्तिके कल्लोलसँ अछि क्षुब्ध ई भूलोक सागर,
देव-दुर्लभ वस्तु नव-नव नित्य सिरजय चतुर नागर।
जलहि देखू विश्वभरिमे कर्मवीरक भाग जागल,
एहू युगमे मरै छी हम हाय! दैवक पाँक लागल।
हाय हम कैथिल अभागल!
विश्वकेँ थर्रा रहल अछि एक जर्मनकेर सिपाही,
हस्तगत अछि एक व्यक्तिक आड रोमक बादशाही।
कर्म-बलसँ एक कुल्ली ब्रिटिशकेर साम्राज्य साजल
तही ब्रिटिशक दास नृपतिक हम रहै छी पाछु लागल।
हाय हम मैथिल अभागल!
धिक् धिगति ओहि बुद्धिकेँ जे लोककेँ कायर बनावै,
त्यागि उद्यम, पेट हेतुक भीख खुस-आमद सिखाबै।
उठू मैथिल युवक! युगमे कर्मयोगक शंख बाजल,
विश्व-विजयी-संगठन-बल पाबि जनता-सैन्य साजल।
हाय हम मैथिल अभागल!
रहि सकल नहि जारशाही, मूल सह सुलतान गेला,
जनमतक प्रतिकूल चलि इङलैण्ड पति पेरिस पड़ैला।
नव युगोदय भेल अछि, नरनाथ छथि नर-नाथ लागल,
एहू जनता-तन्त्र युग मे, किरण की रहले अभागल?
हाय हम मैथिल अभागल?