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युवक-वीर / उपेन्द्र ठाकुर 'मोहन'

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हम अमर-शक्ति छी युवक वीर!
कर्तव्य - क्षेत्रमे तीव्र तेज लै उतरल छी गम्भीर धीर!!
गिरि-निर्भर हम उद्भट प्रवेग, सागर-संप्राप्तिक उग्र चाह,
आँकड़-पाथर, कुश-काँट रोकि ने सकत हमर दुर्धर-प्रवाह,
चट्टानक टक्कर, वक्र बाट कै सकत न हमरा लक्ष्य-भ्रष्ट
प्रतियोगी होयत शीर्ण-दीर्ण, होयब विजयी बरु क्षणिक कष्ट।
हम से जहाज, आवर्त्त लांघि।
जे पहुँचैं अछि उद्दिष्ट तीर।
हम अमर-शक्ति छी युवक-वीर!
अन्धड़-बिहाड़ि उमगौ हजार, हम रहब पहाड़क सदृश ठाढ़,
पाथर बरिसौ, ठनका ठनकौ, ने टारि सकत क्यो ध्येय गाढ़,
कुज्झटिका लै जड़तम तुषार झहरौ, सिहरत ने कने देह,
धरती जरि धीपौ तब समान, टूटत तैयो ने गति-स्नेह,
गन्तव्य स्थल जैबा तक चलिते-
जायब हम दुर्दम समीर।
हम अमर-शक्ति छी युवक वीर!
हम घोर-साधना-व्रत दीक्षित, रोचिष्णु-वीर्य सूर्यक प्रतीक,
जे दैछ विकास-प्रकाश तप्त भै अपने; डर हमरा कथीक?
तकरा बिड़रो बनि उड़ा देब, जे करत प्रगतिमे बिघ्न-बन्ध,
हम लोक-चक्षु यद्यपि, परन्तु निन्दक-उलूककेँ करब अन्ध,
जातिक दुर्गुण-दोषक दवाग्नि।
हम क्रान्ति मचायब प्रति कुटीर।
हम अमर-शक्ति छी युवक-तीर!
सहगामी बन्धु! उठू, बढ़ाउ उत्थान-कार्य नवयुग प्रभात,
रे पॉक-फँसल गायक समान हारल उठान, की धैल कात?
देशक अभिलाषक हमहि केन्द्र, करबाक पड़ल अछि बहुत काज,
साहित्य विपद्गत हन्त! आइ पतनोन्मुख अछि दुर्गत समाज,
रे जन्म-भूमि जननीक नोर
पोछत के हमरा बिना वीर!
हम अमर-शक्ति छी युवक-वीर!