युवक / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
पालन कर जो ब्रह्मचर्य-व्रत, बल विक्रम संचय करते,
अपने पावन उर-अम्बर में ज्ञान-पतंग उदय करते।
तनिक नहीं जो स्वीय शक्ति पर किसी समय संशय करते,
किसी कठिनतम विश्व-कार्य पर किसी समय विस्मय करते।
काम पड़े पर कर्मठ बन कर, सत्वर सन्मुख आते हैं।
सच्चे हितू स्वदेश जाति के युवक वही कहलाते हैं॥
देख किसी असहाय आर्त को, बैठ सकें चुपचाप नहीं,
दीन हीन दलितों का जो सह सकते करुण कलाप नहीं।
विकल देख जो श्रमिक वर्ग को सुख से सोते आप नहीं,
देने पड़ें प्राण भी चाहे पर छोड़ें सन्ताप नहीं।
सच्चे हितू स्वदेश जाति के युवक वही कहलाते हैं॥
भव के अस्थिर भोगों की रहती हो जिनको चाह नहीं,
करें किसी को कभी खरी कहने में कुछ परवाह नहीं।
पड़े लाख संकट सिर पर, पर मुख से निकले आह नहीं,
कटना हो तिल-तिल कर चाहे छोड़ें अपनी राह नहीं।
मौत सामने हो फिर भी मुस्काते आन निभाते हैं।
सच्चे हितू स्वदेश जाति के युवक वही कहलाते हैं॥
कर्णधार बन कर समाज की तरणी को जो खेते हैं,
कार्य-भार कर्त्तव्य जान, सब अपने ऊपर लेते हैं।
आशा-दीप जला जीवन में, नव जागृति भर देते हैं,
कर दानवता-दमन विश्व में, बनते वीर चहेते हैं।
भर असीम उल्लास हृदय में, राष्ट्र-ध्वजा फहराते हैं।
सच्चे हितू स्वदेश जाति के युवक वही कहलाते हैं॥
विपद-ग्रस्त लख कर स्वदेश-सेवा में तत्पर होते हैं,
कर संगठन वीर सेनानी, बीज प्रेम का बोते हैं।
कुचल देश-द्रोही दल को, दुख-दैन्य कालिमा धोते हैं,
माँ का कंठ सजाने को सुख-मौक्तिक-माल पिरोते हैं।
मातृ-भूमि बलिवेदी पर हँस-हँस कर जान लुटाते हैं।
सच्चे हितू स्वदेश जाति के युवक वही कहलाते हैं॥