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युवा लिख रहे थे बगावती तेवर / सुरेश चंद्रा
Kavita Kosh से
युवा
लिख रहे थे
बगावती तेवर
क्रान्ति, दर्शन और शास्त्र
बदलाव की
छटपटाहट लिए
अधेड़ रच रहे थे
अधूरेपन की लय पर
प्रणय के कोरे गीत
विलुप्तते सिहोरे मीत
अपदस्थता के मध्य
अकुलाहट लिए
प्रौढ़ उकता चुके थे
अपनी नसों मे गूँजते, अवसाद भरे गीतों से
गुनगुनाते थे, कातर तानें
पछतावे और पश्ताचाप के पारितोषिक
हताशा निगलते देह की
कंपकपाहट लिए
शनैः शनैः खर्च होते हुए
खपते हुए, जीवन की हर देहरी पर
देह की परतों में हर एक मन
धकेल आना चाहता था
विवशता में, अनमना
कस कर बंद रखा गया, हर एक किवाड़
ये निःसन्देह वही संकीर्ण समय रहा
अपने अस्तित्व की पुष्टि के लिए
पुनश्चः व्याकुल प्रार्थमिकतायें
टोहती रहीं हार! हार! हार!
विकल्प का आपात द्वार.