भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

युवा समर्पण / रचना उनियाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भारत भू के भूषण हो तुमए उन्नति का अतुलित अंबार।
करो समर्पण भाव सुदर्पणए धरो विलक्षण गुण की धार।।

अधिकारों की है लगी हुईए
हर कोने में जैसे होड़।
मुख से बोले वाणी ऐसेए
बोलों से ही देंगें तोड़।
चंचल दूषित अंतस को तजए अंतह अवलोकन शृंगार।
करो समर्पण भाव सुदर्पणए धरो विलक्षण गुण की धार।।

वसुधा के सीमा के प्रहरीए
चपल अटल चौकस दिन.रात।
न्यौछावर करते प्राणों कोए
बलिदानी सैनिक की बात।।
सीमाओं की करें सुरक्षाए त्रिदल शस्त्र की सुन टंकार।
करो समर्पण भाव सुदर्पणए धरो विलक्षण गुण की धार।।

झेलम कावेरी अरु सतलजए
ब्रह्म पुत्र करता है नाद।
भारत माता की संततियोंए
कहो हिंद जय ज़िंदाबाद।
तीन रंग से जीवन पाओए नेह बंध है विचरण सार ।
करो समर्पण भाव सुदर्पणए धरो विलक्षण गुण की धार।।
अनुबंधित हो गये धरा सेए
पाया जब धरणी का द्वार।
उऋण तभी तुम हो पाओगेए
अर्पण करना सत उद्गार।
वचन कर्म से माँ के आँचलए पर करना पुष्पों बौछार।
करो समर्पण भाव सुदर्पणए धरो विलक्षण गुण की धार।।