भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यूँ अँधेरों में चलोगे तो सिहर जाओगे / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
यूँ अँधेरों में चलोगे तो सिहर जाओगे
छोड़ जाओगे जो हमको तो किधर जाओगे
रोज़ मिलते जो रहे ख़्वाब की इस वादी में
यूँ ही आहिस्ता मेरे दिल में उतर जाओगे
वक्त करवट है बदल लेता अचानक जैसे
हाथ छोड़ोगे तो तिनकों से बिखर जाओगे
लोग आते हैं चले जाते हैं राही बन के
मैं जो कह दूँ तो क्या कुछ देर ठहर जाओगे
मैं भरोसा तेरे वादे पर करूँ तो कैसे
छोड़ कर गाँव किसी दिन तो शहर जाओगे
लाख कोशिश मैं करूँ रोक न पाऊँ तुमको
पर बिता के यहाँ दो चार पहर जाओगे
बात दिल की जो सुनोगे तो रुकोगे वरना
यूँ ही चुपचाप मेरे दर से गुज़र जाओगे