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यूँ अपने दिल को बहलाने लगे हैं / अमित शर्मा 'मीत'

यूँ अपने दिल को बहलाने लगे हैं
लिपटकर ख़ुद के ही शाने लगे हैं

हमें तो मौत भी आसां नहीं थी
सो अब ज़िंदा नज़र आने लगे हैं

उदासी इस क़दर हावी थी हम पर
कि ख़ुश होने पर इतराने लगे हैं

सलीक़े से लिपटकर पाँव से अब
ये ग़म ज़ंजीर पहनाने लगे हैं

ग़मों की धूप बढ़ती जा रही है
ख़ुशी के फूल मुरझाने लगे हैं

जो देखी इक शिकारी की उदासी
परिंदे लौट कर आने लगे हैं

फ़क़त अब चंद क़दमों पर है मंज़िल
मगर हम हैं कि सुस्ताने लगे है