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यूँ इश्क़ नशा है पर सब चूर नहीं होते / रंजना वर्मा

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यूँ इश्क नशा है पर सब चूर नहीं होते।
जो प्यार निभाते हैं वह दूर नहीं होते॥

हैं जान लुटा देते आशिक़ तो मुहब्बत में
फुरकत के मगर लम्हे मंजूर नहीं होते॥

महबूब के ख़्वाबों में रहते हैं समाये पर
बस के भी सदा दिल में मग़रूर नहीं होते॥

करते हैं मशक्क़त तब मिलती है कहीं मंजिल
ख़्वाहिश से ही हाथों में अंगूर नहीं होते॥

इकतरफ़ा वफ़ा से तो उल्फ़त है नहीं निभती
ऐसे तो मुहब्बत के दस्तूर नहीं होते॥

महबूब की उल्फ़त में ग़र जान न देते तो
आशिक़ कभी दुनियाँ में मशहूर नहीं होते॥

जलती जो मुफ़लिसों के चूल्हे में आग हर दिन
तो उनके कभी चेहरे बेनूर नहीं होते॥