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यूँ इस दिले नादाँ से रिश्तों का भरम टूटा / 'अना' क़ासमी
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यूँ इस दिले नादाँ से रिश्तों का भरम टूटा,
हो झूठी क़सम टूटी या झूठा सनम टूटा ।
सागर से उठीं आहें, आकाश पे जा पहुँचीं,
बादल-सा ये ग़म आख़िर बा दीदा-ए-नम टूटा ।
ये टूटे खंडहर देखे तो दिल ने कहा मुझसे,
मसनूई ख़ुदाओं के अबरू का है ख़म टूटा ।
बाक़ी ही बचा क्या था लिखने के लिए उसको,
ख़त फाड़ के भेजा है, अलफ़ाज़ का ग़म टूटा ।
उस शोख़ के आगे थे सब रंगे धनक फीके,
वो शाख़े बदन लचकी तो मेरा क़लम टूटा ।
बेचोगे 'अना' अपनी बेकार की शय लेकर,
किस काम में आयेगा जमशेद का जम टूटा ।